"आप सिर्फ प्रतीक्षा कीजिए.... / अजय कुमार" के अवतरणों में अंतर
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+ | पर मेरी आत्मा पढ़ती रही है | ||
+ | पिछले किसी जन्म में खरोष्ठी लिपि | ||
+ | आप पहचान नहीं पाए | ||
+ | मैं ही चुपचाप बैठा पढ़ता रहता था | ||
+ | कभी तक्षशिला के वाचनालय में | ||
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+ | प्रतीक्षा कीजिए | ||
+ | कोई महाकाव्य तो नही | ||
+ | पर एक छोटी सी कविता जरूर लिखूँगा | ||
+ | जो शायद | ||
+ | अब से हजारों साल बाद | ||
+ | किसी और लिपि में पढ़ाई जाएगी | ||
+ | आप सिर्फ प्रतीक्षा कीजिए .. | ||
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02:54, 17 नवम्बर 2022 के समय का अवतरण
शायद मैं अभी
अपने खिलाफ हवाओं में
उड़ना ठीक से सीख नहीं पाया
एक पीतल के लोटे तक को
हजारों साल की लड़ाई लड़नी पड़ती है
कि वो आज एक रसोईघर में
अपनी उपयोगिता सिद्ध कर सके
एक मिट्टी का घड़ा
कितना सकुचाता- सा पड़ा रहता है
एक कोने में
फ्रिज को घूरते हुए
सिर्फ ऐतिहासिक होने से
कोई जरूरी नहीं हो जाता
मुझे भी
अपने भीतर ही शायद
एक नया कुआँ खोजना होगा
फिर चाहे पानी की जगह
मोहनजोदड़ो की पुरानी मिट्टी ही निकले
कम से कम वो
मेरी ही मिट्टी होगी
फिर चाहे एक मृण्मय खिलौना बने
या कोई सुंदर ख्यालों सी मूरत
चाहे मेरा
इतिहास नया और बहुत संक्षिप्त लगे
पर मेरी आत्मा पढ़ती रही है
पिछले किसी जन्म में खरोष्ठी लिपि
आप पहचान नहीं पाए
मैं ही चुपचाप बैठा पढ़ता रहता था
कभी तक्षशिला के वाचनालय में
प्रतीक्षा कीजिए
कोई महाकाव्य तो नही
पर एक छोटी सी कविता जरूर लिखूँगा
जो शायद
अब से हजारों साल बाद
किसी और लिपि में पढ़ाई जाएगी
आप सिर्फ प्रतीक्षा कीजिए ..