"प्रतीक्षालय / शहनाज़ मुन्नी / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर
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रात कभी दिन तक नहीं पहुँचती, | रात कभी दिन तक नहीं पहुँचती, | ||
− | + | सर्दियाँ कभी गर्मियों से नहीं मिलती, | |
− | + | ये एक-दूसरे के विपरीत हैं — | |
− | + | और एक-दूसरे से दूर रहते हैं हमेशा । | |
− | रात और दिन के बीच प्रतीक्षालय | + | |
− | सुबह और शाम के बीच | + | रात और दिन के बीच |
− | सर्दी और गर्मी के बीच | + | एक प्रतीक्षालय है |
− | वर्षा और | + | सुबह और शाम के बीच |
− | + | रोज़ाना संघर्ष होता है | |
− | अक्सर उनके झगड़ों में मध्यस्थता | + | |
− | प्रतीक्षा | + | सर्दी और गर्मी के बीच रहते हैं |
− | लोगों को इसका एहसास कभी नहीं | + | वर्षा और हेमन्त नाम के |
− | पेड़ समझते हैं, वे प्रतीक्षा करते हैं, | + | दो मध्यवर्गीय |
− | + | और शरद नाम के एक सज्जन | |
+ | जो अक्सर उनके बीच होने वाले झगड़ों में | ||
+ | मध्यस्थता करते हैं | ||
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+ | प्रतीक्षा अन्तहीन भी हो सकती है | ||
+ | लोगों को | ||
+ | इसका एहसास कभी नहीं होता । | ||
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+ | पेड़ इस बात को समझते हैं, | ||
+ | वे प्रतीक्षा करते हैं, | ||
+ | जब रात और दिन के बीच मेल हो जाएगा | ||
+ | और | ||
सर्दी और गर्मी के बीच कोई दूरी नहीं होगी। | सर्दी और गर्मी के बीच कोई दूरी नहीं होगी। | ||
09:12, 22 नवम्बर 2022 का अवतरण
रात कभी दिन तक नहीं पहुँचती,
सर्दियाँ कभी गर्मियों से नहीं मिलती,
ये एक-दूसरे के विपरीत हैं —
और एक-दूसरे से दूर रहते हैं हमेशा ।
रात और दिन के बीच
एक प्रतीक्षालय है
सुबह और शाम के बीच
रोज़ाना संघर्ष होता है
सर्दी और गर्मी के बीच रहते हैं
वर्षा और हेमन्त नाम के
दो मध्यवर्गीय
और शरद नाम के एक सज्जन
जो अक्सर उनके बीच होने वाले झगड़ों में
मध्यस्थता करते हैं
प्रतीक्षा अन्तहीन भी हो सकती है
लोगों को
इसका एहसास कभी नहीं होता ।
पेड़ इस बात को समझते हैं,
वे प्रतीक्षा करते हैं,
जब रात और दिन के बीच मेल हो जाएगा
और
सर्दी और गर्मी के बीच कोई दूरी नहीं होगी।
मूल बांगला से अनुवाद : अनिल जनविजय
लीजिए, अब यही कविता मूल बांगला में पढ़िए
শাহনাজ মুন্নী
অপেক্ষা ঘর
রাত কখনো পায়না দিনের নাগাল,
শীতের সাথে গ্রীষ্মের দেখা হয় না কোন দিন,
তবু তারা পরস্পরের দুরত্ব আর বৈপরীত্য নিয়ে
প্রবন্ধ রচনা করে,
রাত আর দিনের মাঝখানে অপেক্ষা ঘর
সেইখানে ভোর আর সন্ধ্যার নিত্য কলহ
শীত আর গ্রীষ্মের মাঝখানে থাকেন
বর্ষা ও হেমন্ত নামের দুজন মধ্যবিত্ত
শরৎ নামের ভদ্রলোক
প্রায়শই তাদের ঝগড়াঝাটিতে মধ্যস্থতা করেন
অপেক্ষা যে অনন্ত হতে পারে
মানুষ তা পায় না কখনো টের,
টের পায় গাছেরা, তারা অপেক্ষা করে,
যেদিন রাত মিলে যাবে দিনের সাথে
শীত আর গ্রীষ্মের কোন দূরত্ব থাকবে না।