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"एक ज़ालिम ने मेरी नींद उड़ा रक्खी है / डी .एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | इतना आसान नहीं उसकी हक़ीक़त जानूं | ||
+ | हर तरफ़ कुहरे की दीवार उठा रक्खी है | ||
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+ | हम ग़रीबों के लिए फ़ौज लगा रक्खी है | ||
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+ | ऐसे इंसान पे कैसे मैं भरोसा कर लूं | ||
+ | जिसने बाजू में ही शमशीर छुपा रक्खी है | ||
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+ | शुक्र मानो कि सलामत वो शख़्स है अब तक | ||
+ | मैंने आंखों में ज़रा शर्म बचा रक्खी है | ||
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20:56, 14 दिसम्बर 2022 के समय का अवतरण
एक ज़ालिम ने मेरी नींद उड़ा रक्खी है
कब से इस दिल में मेरे आग लगा रक्खी है
इतना आसान नहीं उसकी हक़ीक़त जानूं
हर तरफ़ कुहरे की दीवार उठा रक्खी है
अब कहां, किस की वो फ़रियाद सुनेगा यारो
सबको मालूम है दूरी क्यों बना रक्खी है
यार कमज़ोर है , डरपोक हमारा राजा
हम ग़रीबों के लिए फ़ौज लगा रक्खी है
ऐसे इंसान पे कैसे मैं भरोसा कर लूं
जिसने बाजू में ही शमशीर छुपा रक्खी है
शुक्र मानो कि सलामत वो शख़्स है अब तक
मैंने आंखों में ज़रा शर्म बचा रक्खी है