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सागर-मंथन / कविता भट्ट
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22:23, 29 दिसम्बर 2022
जो भी उचित था उसका तर्पण हुआ।
सागर में फिर वही तरुण मंथन हुआ।
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(13-10-2022)
</poem>
वीरबाला
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