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किसने रोके पाँव अचानकधीरे-धीरे टेर के ।उजले –पीले भरकर आए-लो आँगन फूल कनेर के दिन भर गुमसुम सोई माधवीतनिक नहीं आभास रहा ;घिरा अँधेरा खूब नहाईसुरभि- सरोवर पास रहा । पलक बिछाए बिछे धरा परप्यारे फूल कनेर के। बौराया मन चैन ना पाएव्याकुल झुकती डाल –सा पीपल के पत्ते-सा थिरकेहिलता किसी रूमाल-सा चोर पुजारी तोड़ भोर में ,ले गया फूल कनेर के । -0- (12-4-1994:समय सुरभि जनवरी2001)
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