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|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
}}
{{KKCatKavita}}{{KKCatGeet}}<poem>ओ चिरैया ! 
कितनी गहरी
 हुई है तेरी प्यास ! 
जंगल जलकर
 
ख़ाक हुए हैं
 
पर्वत –घाटी
 
राख हुए हैं ,
 
आँखों में
 
हरदम चुभता है
 धुआँ-धुआँ आकाश ।आकाश।
तपती
 
लोहे-सी चट्टानें
 
धूप चली
 
धरती पिंघलाने
 
सपनों में
 
बादल आ बरसे
 जागे हुए उदास ।उदास।
उड़ी है
 
निन्दा जैसी धूल,
 
चुभन-भरे
 
पग-पग हैं बबूल
 
यही चुभन
 
रचती है तेरी –
 पीड़ा का इतिहास ।इतिहास।-0-[11-4-1994: शीराज़ा मार्च 96,अमृत सन्देश,26-6-94, आका-अम्बिकापुर 6-6-99]</poem>