भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मेरी भी आभा है इसमें / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
छो
 
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
कवि: [[नागार्जुन]]
+
{{KKGlobal}}
 
+
{{KKRachna
[[Category:कविताएँ]]
+
|रचनाकार=नागार्जुन
 
+
}}
[[Category:नागार्जुन]]
+
{{KKCatKavita‎}}
 
+
{{KKVID|v=Bbcj2Ca0dXg}}
~*~*~*~*~*~*~*~
+
<Poem>
 
+
 
+
 
नए गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है  
 
नए गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है  
 
 
यह विशाल भूखंड आज जो दमक रहा है  
 
यह विशाल भूखंड आज जो दमक रहा है  
 
 
मेरी भी आभा है इसमें  
 
मेरी भी आभा है इसमें  
 
 
  
 
भीनी-भीनी खुशबूवाले  
 
भीनी-भीनी खुशबूवाले  
 
 
रंग-बिरंगे  
 
रंग-बिरंगे  
 
 
यह जो इतने फूल खिले हैं  
 
यह जो इतने फूल खिले हैं  
 
+
कल इनको मेरे प्राणों ने नहलाया था  
कल इनको मेरे प्राणों मे नहलाया था  
+
 
+
 
कल इनको मेरे सपनों ने सहलाया था  
 
कल इनको मेरे सपनों ने सहलाया था  
 
 
  
 
पकी सुनहली फसलों से जो  
 
पकी सुनहली फसलों से जो  
 
 
अबकी यह खलिहाल भर गया  
 
अबकी यह खलिहाल भर गया  
 
+
मेरी रग-रग के शोणित की बूंदें इसमें मुसकाती हैं  
मेरी रग-रग के शोणित की बूँदें इसमें मुसकाती हैं  
+
 
+
 
+
  
 
नए गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है  
 
नए गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है  
 
 
यह विशाल भूखंड आज जो चमक रहा है  
 
यह विशाल भूखंड आज जो चमक रहा है  
  
1961
+
'''रचनाकाल : 1961
 +
</poem>

21:36, 26 जनवरी 2023 के समय का अवतरण

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें

नए गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है
यह विशाल भूखंड आज जो दमक रहा है
मेरी भी आभा है इसमें

भीनी-भीनी खुशबूवाले
रंग-बिरंगे
यह जो इतने फूल खिले हैं
कल इनको मेरे प्राणों ने नहलाया था
कल इनको मेरे सपनों ने सहलाया था

पकी सुनहली फसलों से जो
अबकी यह खलिहाल भर गया
मेरी रग-रग के शोणित की बूंदें इसमें मुसकाती हैं

नए गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है
यह विशाल भूखंड आज जो चमक रहा है

रचनाकाल : 1961