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गाँव / अशोक तिवारी
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04:10, 11 जून 2023
पूँजी का ये खेल भई अब किसको समझ न आए
अनगिन इंसानों को तुमने दिए ज़ख्म, आघात I
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07/10/2010
</poem>
Ashok tiwari
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