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ये बह्र ये अरकान अभी सीख रहा हूँ
होने की फरिश्ता फ़रिश्ता नहीं ख़्वाहिश मुझे हरगिज़
बनना ही मैं इंसान अभी सीख रहा हूँ
आग़ाज़े महब्बत मुहब्बत में ये ग़मज़े ये अदाएं
ले लें न कहीं जान अभी सीख रहा हूँ
कुर्बत क़ुर्बत तिरी जी का मिरे जंजाल न बन जाए
हर शय से हूँ अंजान अभी सीख रहा हूँ
महफ़ूज़ न रख पाऊँगा दौलत के ख़ज़ीनेख़ज़ाने
कहता है ये दरबान अभी सीख रहा हूँ
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