गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
खोल दो / प्रताप सिंह
10 bytes added
,
04:54, 15 नवम्बर 2008
अनबोली घुटन में पस्त
मेरा चेहरा
मेरा कमरा
मेरा दफ़्तर
मेरा देश
भीतर कौन है जो हवा को मथ रहा है
भीतर कोई है
जो हवा बारूद से
ज़मीन, खिड़की, सड़क को
आसमान तक ले जाकर
खोल देगा
अनिल जनविजय
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,253
edits