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मैं लौट जाऊंगा / उदय प्रकाश

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|रचनाकार=उदय प्रकाश
|संग्रह= रात में हारमोनियम हारमोनिययम / उदय प्रकाश
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क्वाँर में जैसे बादल लौट जाते हैं
 
धूप जैसे लौट जाती है आषाढ़ में
 ओस लौट जाती है जिस तरह अंतरिक्ष अन्तरिक्ष में चुपचाप अंधेरा अन्धेरा लौट जाता है किसी अज्ञातवास में अपने दुखते हुए शरीर को कंबल कम्बल में छुपाए थोड़े-से सुख और चुटकी-भर साँत्वना सान्त्वना के लोभ में सबसे छुपकर आई हुई 
व्याभिचारिणी जैसे लौट जाती है वापस में अपनी गुफ़ा में भयभीत
 
पेड़ लौट जाते हैं बीज में वापस
 अपने भांडेभाण्डे-बरतन, हथियारों, उपकरणों और कंकालों कँकालों के साथ 
तमाम विकसित सभ्यताएँ
 
जिस तरह लौट जाती हैं धरती के गर्भ में हर बार
 
इतिहास जिस तरह विलीन हो जाता है किसी समुदाय की मिथक-गाथा में
 
विज्ञान किसी ओझा के टोने में
 तमाम औषधियाँ आदमी के असंख्य असँख्य रोगों से हार कर अंत अन्त में जैसे लौट 
जाती हैं
किसी आदिम-स्पर्श या मन्त्र में
किसी आदिम-स्पर्श या मंत्र में  मैं लौट जाऊंगा जाऊँगा जैसे समस्त महाकाव्य, समूचा संगीत, सभी भाषाएँ और 
सारी कविताएँ लौट जाती हैं एक दिन ब्रह्माण्ड में वापस
 
मृत्यु जैसे जाती है जीवन की गठरी एक दिन सिर पर उठाए उदास
 जैसे रक्त लौट जाता है पता नहीं कहाँ अपने बाद शिराओं में छोड़ करछोड़करनिर्जीव-निस्पंद निस्पन्द जल 
जैसे एक बहुत लम्बी सज़ा काट कर लौटता है कोई निरपराध क़ैदी
 
कोई आदमी
 
अस्पताल में
 
बहुत लम्बी बेहोशी के बाद
 एक बार आँखें खोल कर खोलकर लौट जाता है अपने अंधकार अन्धकार मॆं जिस तरह ।</poem>
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