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खिड़की / ज्यून तकामी

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|संग्रह=पहाड़ पर चढ़ना चाहते हैं सब / ज्यून तकामी
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खिड़की खोल जल्दी से
 
ओ लड़की!
कमरे में भरा है
 सिगरेट का धुँआधुआँ
और बातों का शोर
 खिड़की खोल, अरी लड़की!  
मेरे दिल की ओर ।
 
मेरे दिल के कमरे में
 
अभी तक आए नहीं मेहमान
 
बन्द पड़ा है अभी तक वह
 
बहुत तेज़ घुटन है
 
मन है मेरा बेहद परेशान ।
 
ओ लड़की !
 
खुली रहने दे खिड़की
 बस , छोड़ दे ऎसे ही अब देखने दे मुझे यह गूंगा गूँगा नीला आसमान 
बतियाने दे हरे पेड़ों से
 
ताकने दे नीरव सन्नाटे भरी शाम ।
 
'''रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
</Poem>
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