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गिलहरी / जगदीश व्योम

9 bytes removed, 04:30, 30 नवम्बर 2023
धागे और ताश के पत्ते
सुतली, कागज, रुई, मोंमियाँ
अगड़म-बगड़म लाती।लातीगिलहरी दिनभर आती-जाती।। जाती।
ठीक रसोईघर के पीछे
 
शीशे की खिड़की के नीचे
 
`एस्किमो' सा गोल-गोल घर
 चुन-चुन खूब बनाती।बनातीगिलहरी दिनभर आती-जाती।। जाती।
दो बच्चे हैं छोटे-छोटे
 
ठीक अँगूठे जिनते मोटे
 
बड़े प्यार से उन दोनों को
 अपना दूध पिलाती।पिलातीगिलहरी दिनभर आती-जाती।। जाती।
खिड़की पर जब कौआ आता
 
बच्चे खाने को ललचाता
 
पूँछ उठाकर चिक्-चिक्-चिक्-चिक्
 करके उसे डराती।डरातीगिलहरी दिनभर आती-जाती।। जाती।
भोली-भाली बहुत लजीली
 
छोटी-सी प्यारी शरमीली
 
देर तलक शीशे से चिपकी
बच्चों से बतलाती
गिलहरी दिनभर आती-जाती।
बच्चों से बतलाती। गिलहरी दिनभर आती-जाती।।डॅा. जगदीश व्योम
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