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"अकड़ गया रमजानी / राम सेंगर" के अवतरणों में अंतर

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इत मूँदे, उत फूटे
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इत मून्दे, उत फूटे
 
किरिया-भरा न दीखे
 
किरिया-भरा न दीखे
फरुआ चले न खड़ी फसल में
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फरुआ चले न खड़ी फ़सल में
 
खीझे-झींके
 
खीझे-झींके
 
पहली सींच
 
पहली सींच
ठंड में भीगा
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अकड़ गया रमजानी।
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लालटेन अलसेट दे गई
 
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शीशा टूटा
 
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हाल न उसका
 
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कोई जाने
 
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कैसी अकथ कहानी।
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मिट्टी में लिथड़े
 
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पाजामा-पहुँचे धोए
 
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पोंछ रहा पेशानी।
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सच जाना
 
सच जाना
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07:49, 25 जनवरी 2024 के समय का अवतरण

रात अन्धेरी,
भूड़<ref>गेहूँ-जौ की फ़सल की पहली सींच </ref> और ज़ालिम बम्बा का पानी ।

इत मून्दे, उत फूटे
किरिया-भरा न दीखे
फरुआ चले न खड़ी फ़सल में
खीझे-झींके
पहली सींच
ठण्ड में भीगा
अकड़ गया रमजानी ।

लालटेन अलसेट दे गई
शीशा टूटा
उड़ी शायरी
‘पत्ता पत्ता-बूटा बूटा’
हाल न उसका
कोई जाने
कैसी अकथ कहानी ।

मिट्टी में लिथड़े
पाजामा-पहुँचे धोए
कोट न फतुही थर-थर काँपे
खोए-खोए
रोक मुहारा
आस्तीन से
पोंछ रहा पेशानी ।

बगीचिया से बीन जलावन
आग जलाई
देह सिंकी, बीड़ी
सुलगी
कुछ गरमी आई
बदली सूरत का
सच जाना
बढ़ी और हैरानी ।

शब्दार्थ
<references/>