भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"स्वच्छन्द स्त्री / नेहा नरुका" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नेहा नरुका |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | {{KKCatKavita} | + | {{KKCatKavita}} |
<poem> | <poem> | ||
एक स्वच्छन्द स्त्री | एक स्वच्छन्द स्त्री |
13:28, 17 मार्च 2024 के समय का अवतरण
एक स्वच्छन्द स्त्री
पतंग की तरह
कुछ देर आसमान में उड़ी
फुर्र... फुर्र... फुर्र...
गिरी फिर अचानक
मुण्डेर पर
मुण्डेर से सरक कर आ गई आँगन में
बब्बा के पैरों तले दबी रही
दो-चार घण्टे
अम्मा के चौके में
चूल्हे के पास
फटी लौ बन बिलखती रही
पाँच-छह घण्टे
फिर राख के संग
कूड़ा समझकर
तसले में रख
फेंक दी गई
गाँव के किनारे बने घूरे में
इस तरह
उस स्वच्छन्द स्त्री का
अन्त हुआ ।