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फुटकर शेर / कांतिमोहन 'सोज़'

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क्या होगी तेरे पास ख़बर इससे ज़ियादा ।
क्यूं क्यूंँ मेरी ख़्वाहिश न हो हर सिम्त हो अम्नो-अमान
हो किसी की भी ख़ता सबकी सज़ा पाता हूँ मैं ।
 
एक दिन वो आलम था हर हरीफ़<ref>प्रतिद्वंद्वी</ref> अपना था
आज अपना साया भी किस क़दर पराया है।
 
जिसने कुछ नहीं देखा आस्मां पे जा पहुँचा
वो कभी न उड़ पाया जिसने बालो-पर देखा।
 
तीरगी इतनी ज़बर है हमें एहसास न था
वर्ना पहलू से कोई शम्स उगाया होता।
 
इन काँपते हाथों की तौफ़ीक़ न कम समझें
क्या जानिए कल इनमें शमशीर नहीं होगी।
 
अजीब बात है कोई यक़ीं नहीं करता
कि मेरे साथ सुलूक उसका दोस्ताना हुआ।
 
हर क़दम पर था आस्तां यूँ तो
अपना सर था झुका कहीं भी नहीं।
 
ख़ता जब अपनी नहीं थी तो अपने बाप की थी
बड़ा अज़ाब था यारों का मेमना होना।
 
बू हो कि रंग हो न रहेगा किसी को याद
हाँ सोज़ एक फूल था खिलकर बिखर गया।
 
आह तक़दीर ने क्या दिन हमें दिखलाए हैं
हम कि हर हाल में जीने पे उतर आए हैं।
 
अँधेरे से न यूँ मायूस हो रौशन जबीं वाले
इसी तारीक शब की कोख से सूरज निकलना है।
 
हमने एक बार वफ़ा की तो वफ़ा करते रहे
ये अगर जुर्म है यारो तो ख़तावार हैं हम।
 
दुनिया मुझे कर माफ़ मैं कुछ सोच रहा हूँ
बतलाऊँ तुझे साफ़ मैं कुछ सोच रहा हूँ ।
(02-10-2023)
 
क्या याद आ रहा है मुझे क्या भूल गया हूँ ।
वो कहते हैं मैं अहदे-वफ़ा भूल गया हूँ ।
दुनिया की चकाचौंध से बेज़ार बहुत हूँ,
मुमकिन है कि मैं शर्मो हया भूल गया हूँ ।
(05-09-2023)
 
है आज दिलजले की विदाई संभालके चल।
सुनता है कौन तेरी दुहाई
है आज दिलजले की विदाई संभालके चल।
सुनता है कौन तेरी दुहाई
(04-09-2023)
 
लौहे जहाँ पे हर्फ़े मुकर्रर हैं हम सही
अपना वजूद फिर भी मिटाया न जाएगा ।
(04-09-2023)
 
हमारी बात हमीं से छिपाई जाती है
क़दम - क़दम पे वफ़ा आज़माई जाती है ।
(02-09-2023)
 
रात काली हो गई है!
एक ही प्याली में कुछ था
वो भी ख़ाली हो गई है!
रात काली हो गई है!
(27-05-2023)
 
 
 
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