भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बादल / नामवर सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नामवर सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
 
पुरवैया के हिलकोरों से
 
पुरवैया के हिलकोरों से
 
क्यों इतना इठलाता बादल ?
 
क्यों इतना इठलाता बादल ?
मस्ती के आलम में किसपरूना
+
मस्ती के आलम में किसपर
 +
घुमड़ - घुमड़ घिर जाता बादल ?
  
 
अन्तर में ग्रीष्म जलता
 
अन्तर में ग्रीष्म जलता
पंक्ति 15: पंक्ति 16:
 
नन्हे से जीवन में उठकर
 
नन्हे से जीवन में उठकर
 
आज हिलोरें लेता यौवन
 
आज हिलोरें लेता यौवन
जिसमें खेल रहा चपला सा
+
जिसमें खेल रहा चपला - सा
 
एक लकीर लिए अपनापन
 
एक लकीर लिए अपनापन
 
अपनी क्रीड़ा से भर देता
 
अपनी क्रीड़ा से भर देता
पंक्ति 21: पंक्ति 22:
  
 
देख तुम्हें कुछ पास हृदय के
 
देख तुम्हें कुछ पास हृदय के
धुँधला सा छा जाता बादल ?
+
धुँधला - सा छा जाता बादल ?
  
 
मुँदते सरसिज - रवि पर पागल
 
मुँदते सरसिज - रवि पर पागल
 
अलिदल - से बादल मड़राए
 
अलिदल - से बादल मड़राए
छलकाते से उर का मधुरस
+
छलकाते - से उर का मधुरस
 
किरन - पँखुरियों पर घिर आए
 
किरन - पँखुरियों पर घिर आए
घुँघराली घन सी अलकों पर
+
घुँघराली घन - सी अलकों पर
 
किसके हृदय नहीं लहराए
 
किसके हृदय नहीं लहराए
 
अधरों पर तड़पन, आँसू बन
 
अधरों पर तड़पन, आँसू बन
पंक्ति 36: पंक्ति 37:
  
 
पल - पल मरने ही मिटने में
 
पल - पल मरने ही मिटने में
बिता दिया यह भारी जवानी
+
बिता दी यह भारी जवानी
 
बन्धन में प्राचीर पवन के
 
बन्धन में प्राचीर पवन के
 
उम्र कटी, खो गई रवानी  
 
उम्र कटी, खो गई रवानी  

16:00, 30 अगस्त 2024 के समय का अवतरण

पुरवैया के हिलकोरों से
क्यों इतना इठलाता बादल ?
मस्ती के आलम में किसपर
घुमड़ - घुमड़ घिर जाता बादल ?

अन्तर में ग्रीष्म जलता
आँखों में उमड़ा - सा सावन
नन्हे से जीवन में उठकर
आज हिलोरें लेता यौवन
जिसमें खेल रहा चपला - सा
एक लकीर लिए अपनापन
अपनी क्रीड़ा से भर देता
सूने नभ - उर का सूनापन

देख तुम्हें कुछ पास हृदय के
धुँधला - सा छा जाता बादल ?

मुँदते सरसिज - रवि पर पागल
अलिदल - से बादल मड़राए
छलकाते - से उर का मधुरस
किरन - पँखुरियों पर घिर आए
घुँघराली घन - सी अलकों पर
किसके हृदय नहीं लहराए
अधरों पर तड़पन, आँसू बन
बन्द अँखड़ियों में तुम छाए

क्यों अपनी बूँदों के तारों पर
रोकर गा जाता बादल ?

पल - पल मरने ही मिटने में
बिता दी यह भारी जवानी
बन्धन में प्राचीर पवन के
उम्र कटी, खो गई रवानी
रह - रह उमड़ - उमड़ आती क्यों
उर में भूली बात पुरानी
दिल का राज छिपाकर तूने
ज्वालामुखी रचा अभिमानी

क्यों जल - जल, घुल - घुल, रो - रोकर
तड़प - तड़प रह जाता बादल ?

ऊँघ रही भीगी पलकों में
मधुमय स्वप्न लिए अन्धियारी
जुगनू के अंगार कुसुम से
सजा - सजा नभ की फुलवारी
पवन करों से सहला भू के
घावों को भर दिया अनारी
और धरा की पुलकन में
दी बाँध नशीली नींद - खुमारी

फिर क्यों टूटे जलतारों पर
रुँधे कण्ठ से गाता बादल ?

मँह - मँह फूलों के सौरभ में
उड़ जाती है भ्रमर कहानी
रह - रह सो जाते श्यामल खेतों
पर घन - दुनिया दीवानी
अहरह जीवन के सागर में
उड़ते हैं बुद - बुद तूफ़ानी
लह - लह लहराती घासों पर
छम - छम नाच रहा है पानी

भार लिए अम्बर का द्रुत
पंखों पर उतरा आता बादल ?
पुरवैया के हिलकोरों में
क्यों इतना इठलाता बादल ?

क्षत्रिय मित्र, सितम्बर, १९४३