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यह मंदिर का दीप / महादेवी वर्मा

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लेखिका: [[महादेवी वर्मा]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार= महादेवी वर्मा]]}}{{KKCatKavita}}<poem>यह मन्दिर का दीप इसे नीरव जलने दोरजत शंख घड़ियाल स्वर्ण वंशी-वीणा-स्वर,गये आरती वेला को शत-शत लय से भर,जब था कल कंठो का मेला,विहंसे उपल तिमिर था खेला,अब मन्दिर में इष्ट अकेला,इसे अजिर का शून्य गलाने को गलने दो!
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~चरणों से चिन्हित अलिन्द की भूमि सुनहली,प्रणत शिरों के अंक लिये चन्दन की दहली,झर सुमन बिखरे अक्षत सित,धूप-अर्घ्य नैवेदय अपरिमिततम में सब होंगे अन्तर्हित,सबकी अर्चित कथा इसी लौ में पलने दो!
यह मन्दिर पल के मनके फेर पुजारी विश्व सो गया,प्रतिध्वनि का दीप इसे नीरव जलने दो <br>इतिहास प्रस्तरों बीच खो गया,रजत शंख घड़ियाल स्वर्ण वंशी-वीणा-स्वरसांसों की समाधि सा जीवन,<br>गये आरती वेला को शतमसि-शत लय से भर,<br>जब था कल कंठो सागर का मेला,<br>पंथ गया बनविहंसे उपल तिमिर था खेलारुका मुखर कण-कण स्पंदन,<br>अब मन्दिर इस ज्वाला में इष्ट अकेला,<br>इसे अजिर का शून्य गलाने को गलने प्राण-रूप फिर से ढलने दो!<br><br>
चरणों से चिन्हित अलिन्द की भूमि सुनहली,<br>प्रणत शिरों के अंक लिये चन्दन की दहली,<br>झर सुमन बिखरे अक्षत सित,<br>धूप-अर्घ्य नैवेदय अपरिमित <br>तम में सब होंगे अन्तर्हित,<br>सबकी अर्चित कथा इसी लौ में पलने दो!<br><br> पल के मनके फेर पुजारी विश्व सो गया,<br>प्रतिध्वनि का इतिहास प्रस्तरों बीच खो गया,<br>सांसों की समाधि सा जीवन,<br>मसि-सागर का पंथ गया बन<br>रुका मुखर कण-कण स्पंदन,<br>इस ज्वाला में प्राण-रूप फिर से ढलने दो!<br><br> झंझा है दिग्भ्रान्त रात की मूर्छा गहरी<br>आज पुजारी बने, ज्योति का यह लघु प्रहरी,<br>जब तक लौटे दिन की हलचल,<br>तब तक यह जागेगा प्रतिपल,<br>रेखाओं में भर आभा-जल<br>दूत सांझ का इसे प्रभाती तक चलने दो!<br><br/poem>
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