"स्वगत: / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर
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|रचनाकार=नागार्जुन | |रचनाकार=नागार्जुन | ||
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+ | |संग्रह=भूल जाओ पुराने सपने / नागार्जुन | ||
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आदरणीय, | आदरणीय, | ||
अब तो आप | अब तो आप | ||
− | पूर्णतः मुक्त जन हो! | + | पूर्णतः मुक्त जन हो ! |
कम्प्लीट्ली लिबरेटेड... | कम्प्लीट्ली लिबरेटेड... | ||
− | जी हाँ कोई ससुरा | + | जी हाँ, कोई ससुरा |
आपकी झाँट नहीं | आपकी झाँट नहीं | ||
उखाड़ सकता, जी हाँ !! | उखाड़ सकता, जी हाँ !! | ||
जी हाँ, आपके लिए | जी हाँ, आपके लिए | ||
कोई भी करणीय-कृत्य | कोई भी करणीय-कृत्य | ||
− | शेष नहीं बचा है | + | शेष नहीं बचा है, |
जी हाँ, आप तो अब | जी हाँ, आप तो अब | ||
इतिहास-पुरुष हो | इतिहास-पुरुष हो | ||
− | स्थित | + | स्थित प्रज्ञ — |
निर्लिप्त, निरंजन... | निर्लिप्त, निरंजन... | ||
− | युगावतार! | + | युगावतार ! |
जो कुछ भी होना था | जो कुछ भी होना था | ||
− | सब हो चुके आप! | + | सब हो चुके आप ! |
− | ओ मेरी माँ, ओ मेरे बाप! | + | ओ मेरी माँ, ओ मेरे बाप ! |
आपकी कीर्ति- | आपकी कीर्ति- | ||
− | जल-थल-नभ में गई है व्याप! | + | जल-थल-नभ में गई है व्याप ! |
− | सब कुछ हो आप! | + | सब कुछ हो आप ! |
− | प्रभु क्या नहीं हो आप! | + | प्रभु, क्या नहीं हो आप ! |
क्षमा करो आदरणीय, | क्षमा करो आदरणीय, | ||
अकेले में, अक्सर | अकेले में, अक्सर | ||
मैंने आपको | मैंने आपको | ||
− | दुर्वचन कहे हैं! | + | दुर्वचन कहे हैं ! |
− | नहीं कहे हैं क्या? | + | नहीं कहे हैं क्या ? |
− | हाँ, हाँ, | + | हाँ, हाँ, बारहा कहे हैं |
− | मैंने आपको दुर्वचन जी भर के फटकारा है, | + | मैंने आपको दुर्वचन, जी भर के फटकारा है, |
− | जी हाँ, अक्सर फटकारा है | + | जी हाँ, अक्सर फटकारा है, |
− | क्षमा करो प्रभु! | + | क्षमा करो, प्रभु ! |
महान हो आप... | महान हो आप... | ||
महत्तर हो, महत्तम हो | महत्तर हो, महत्तम हो | ||
− | क्या नहीं हो आप? | + | क्या नहीं हो आप ? |
− | मेरी माँ, मेरे बाप! | + | मेरी माँ, मेरे बाप ! |
− | क्या नहीं हो आप? | + | क्या नहीं हो आप ? |
− | + | ||
− | + | ||
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03:07, 30 सितम्बर 2024 के समय का अवतरण
आदरणीय,
अब तो आप
पूर्णतः मुक्त जन हो !
कम्प्लीट्ली लिबरेटेड...
जी हाँ, कोई ससुरा
आपकी झाँट नहीं
उखाड़ सकता, जी हाँ !!
जी हाँ, आपके लिए
कोई भी करणीय-कृत्य
शेष नहीं बचा है,
जी हाँ, आप तो अब
इतिहास-पुरुष हो
स्थित प्रज्ञ —
निर्लिप्त, निरंजन...
युगावतार !
जो कुछ भी होना था
सब हो चुके आप !
ओ मेरी माँ, ओ मेरे बाप !
आपकी कीर्ति-
जल-थल-नभ में गई है व्याप !
सब कुछ हो आप !
प्रभु, क्या नहीं हो आप !
क्षमा करो आदरणीय,
अकेले में, अक्सर
मैंने आपको
दुर्वचन कहे हैं !
नहीं कहे हैं क्या ?
हाँ, हाँ, बारहा कहे हैं
मैंने आपको दुर्वचन, जी भर के फटकारा है,
जी हाँ, अक्सर फटकारा है,
क्षमा करो, प्रभु !
महान हो आप...
महत्तर हो, महत्तम हो
क्या नहीं हो आप ?
मेरी माँ, मेरे बाप !
क्या नहीं हो आप ?