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बँटा हुआ एक घर / कुँवर दिनेश
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3 नवम्बर
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<poem>
बँटा हुआ एक घर
मैंने कविता लिखनी चाही
एक घर पे:
एक ही छत के नीचे
बंटा हुआ एक
घ र
घर
कितने ही
कट-
घ रों
कटघरों
में विभाजित,
सब में पृथक्-
पृथक् चूल्हा,
वीरबाला
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