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"अपना तेवर सँभाल कर रक्खो / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | लाखों हैं डोरे डालने वाले | ||
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+ | प्रेम से बढ़ के क्या है दुनिया में | ||
+ | ढाई अक्षर सँभाल कर रक्खो | ||
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18:40, 3 मई 2025 के समय का अवतरण
अपना तेवर सँभाल कर रक्खो
दिल के भीतर सँभाल कर रक्खो
जो लुटेरों की नज़र पर हों चढ़े
ऐसे जेवर सँभाल कर रक्खो
थोड़ा गुस्से पे भी पाओ काबू
ये बवंडर सँभाल कर रक्खो
हम निहत्थों के जो हथियार हों कल
ऐसे पत्थर सँभाल कर रक्खो
चोर डाकू भी गश्त पर हैं यहाँ
घर औ बाहर सँभाल कर रक्खो
वार करने में माना चूक गया
फिर भी ख़ंजर सँभाल कर रक्खो
लाखों हैं डोरे डालने वाले
अपना दिलबर सँभाल कर रक्खो
प्रेम से बढ़ के क्या है दुनिया में
ढाई अक्षर सँभाल कर रक्खो