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कोई नहीं कर सकता ख़िदमत जितनी खाला करती है
14
ज़िक्र क्यों कर हो गरीबी का भला हर बात पर
शुक्र कर, तू जो भी है, जैसे भी हैं हालात पर
एक दिन तक़दीर सँवरेगी तेरी भी ऐ 'रक़ीब'
नेकनीयत और भरोसा रख ख़ुदा की जात पर
 
मुफलिसी का तजकरा करता है क्यों हर बात पर
शुक्र कर, तू जो भी है, जैसे भी हैं हालात पर
और उर्दू से मुझे मिलती है बेहद लज़्ज़त
23
हो दिल का मरज़ दूर भला कैसे के अब तो
मँहगाई को मुफ़लिस पे दया तक नहीं आती
मुश्किल से महीने में बचाता है वह जितना
उतने में तो खाँसी की दवा तक नहीं आती
 
24
ज़िन्दगी के दिन कटे आओ जवाँ रातें करें
नानियों, माता-पिता, मौसी व मामाओं के बाद
26
रंग, अबीर, गुलाल लगाकर मिलाकर फूलों की बौछार करें
फ़ागुन आया छोड़ के नफ़रत प्यार करें, बस प्यार करें
छोटों को दें, बड़ों से लेकर, आशीर्वाद आज के दिन
ऐ जहां वालो सुनो हम हो गए हैं साठ के
37
न खाई न झूठी क़सम खाएंगे खाएँगे हमजुदा हो के तुझसे न रह पाएंगे पाएँगे हम
यक़ीं गर न हो देख ले आज़माकर
बिछड़ने से पहले ही मर जाएंगे जाएँगे हम
38
सज गया है फ़लक चाँद की दीद है
जुस्तजू बोसा-ए-दिलदार नहीं थी, कि जो है
ज़िन्दगी हुस्न परस्तार नहीं थी, कि जो है
उसके आने से 'रक़ीब' आई है जीवन में खुशीख़ुशी
हक़ में दुनिया मेरे गुलज़ार नहीं थी, कि जो है
40कुछ तीस बरस पास समुन्दर के रहा जो दरिया तो चलो ठीक है सहरा नहीं लेगा 41सुकूँ पज़ीर नहीं हैं गड़े हुए मुर्देउखाड़िए न इन्हें, ये वबाल कर देंगे42उलझा ये जनेऊ तो सुलझता नहीं उस से सुलझाएगा कैसे भला महबूब के गेसू43लेकर वो कई साथ में आती है हमेशाकहते हैं मुसीबत कभी तनहा नहीं आती44हम चैन से बैठेंगे किसी हाल न जब तक भारत का ये परचम वहाँ फहरा नहीं लेंगे45आओ कुछ ऐसा करें आग नफ़रत की बुझेहम भी समझाएं इन्हें, तुम भी समझाओ उन्हें
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