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"दो पत्तों के बीच / जयप्रकाश मानस" के अवतरणों में अंतर

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पेड़ की छाया में
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बस एक धीमी-सी आवाज़
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जैसे कोई दूर से
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अपना नाम ले रहा हो।
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मैं हाथ बढ़ाता हूँ
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पकड़ना चाहता हूँ हवा को;
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वह फिसल जाती है
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जैसे कोई सपना
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मैं भी रहता हूँ
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19:54, 8 जुलाई 2025 के समय का अवतरण


दो पत्तों के बीच हवा रहती है
थोड़ी- सी
जितनी एक साँस में आती है।

मैं खड़ा हूँ
पेड़ की छाया में
सोचता हूँ कि छाया
पेड़ की है या मेरी।

पत्ते हिलते हैं
कहते हैं कुछ; पर शब्द नहीं
बस एक धीमी-सी आवाज़
जैसे कोई दूर से
अपना नाम ले रहा हो।

मैं हाथ बढ़ाता हूँ
पकड़ना चाहता हूँ हवा को;
पर उँगलियों के बीच
वह फिसल जाती है
जैसे कोई सपना
जो सुबह तक भूल जाता है।

दो पत्तों के बीच
मैं भी रहता हूँ
थोड़ा-सा।
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