"पेट का सवाल है / शैल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
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भागते भूत की लंगोटी भली | भागते भूत की लंगोटी भली | ||
सोचकर 'हाँ' कर दी | सोचकर 'हाँ' कर दी | ||
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+ | कूदने फांदने की | ||
+ | सात दिन बाद | ||
+ | 'शो' मे लाया गया | ||
+ | उचक-उचक कर | ||
+ | दिखा रहे थे कलाबाजियाँ | ||
+ | दर्शक-गण बुद्धू बने | ||
+ | बजा रहे थे तालियाँ | ||
+ | तभी अक्स्मात | ||
+ | छूट गया हाथ | ||
+ | जा गिरे | ||
+ | कटघरे में शेर के | ||
+ | गिरते ही चिल्लाए- | ||
+ | "बचाओ-बचाओ।" | ||
+ | तभी शेर बोला-"शोर मत मचाओ | ||
+ | पेट का सवाल है | ||
+ | हमारे उपर भी | ||
+ | शेर की खाल है | ||
+ | हम भी है तुम्हारी तरह सिखाए हुए | ||
+ | एम्पलायमेंट एक्सचेंज के लागाए हुए।" |
22:10, 28 नवम्बर 2008 का अवतरण
बीस साल पहले
हमने कोशिश की
हमें भी मिले
कोई नौकरी अछ्छी सी
इसी आशा में दे दी
दरख़्वास्त
एम्पलायमेंट एक्सचेंज में
बीस साल की एज में
गुज़र गए आठ साल
कोई जवाब नहीं आया
और एक दिन प्रात:काल
एम्पलायमेंट एक्सचेंज वालों का
पत्र आया
इंटरव्यू के लिए
गया था बुलाया
हम बनठन कर
राजकुमारों की तरह तनकर
पहुंचे रोज़गार दफ़्तर
बतलाया गया-
"जगह एक खाली है
सर्कस में बन्दर की।"
भागते भूत की लंगोटी भली
सोचकर 'हाँ' कर दी
हमारी डाक्टरी जांच की गई
कूदने फांदने की
सात दिन बाद
'शो' मे लाया गया
उचक-उचक कर
दिखा रहे थे कलाबाजियाँ
दर्शक-गण बुद्धू बने
बजा रहे थे तालियाँ
तभी अक्स्मात
छूट गया हाथ
जा गिरे
कटघरे में शेर के
गिरते ही चिल्लाए-
"बचाओ-बचाओ।"
तभी शेर बोला-"शोर मत मचाओ
पेट का सवाल है
हमारे उपर भी
शेर की खाल है
हम भी है तुम्हारी तरह सिखाए हुए
एम्पलायमेंट एक्सचेंज के लागाए हुए।"