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सर्दियाँ (३) / कुँअर बेचैन

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|रचनाकार=कुँअर बेचैन
}}
 
मुँह में धुँआ, आँख में पानी
पेट सभी की है मजबूरीमज़बूरी
भरती नहीं जिसे मजबूरीमज़बूरी
फुटपाथों पर नंगे तन क्या-
लिपटी-लगी छोड़कर अब तो कहता बिल्कुल साफ़ दिसंबर।
 
'''''-- यह कविता [[Dr.Bhawna Kunwar]] द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।<br><br>'''''
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