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"एक शाम को / प्रयाग शुक्ल" के अवतरणों में अंतर

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वह शाम का एक चोर दरवाज़ा था
 
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पार्क के एकांत में,
 
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चींटों में आकर मिला जा रहा था
 
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रात का रंग ।
 
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एक वायुयान जा रहा था उड़ता हुआ
 
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ऊपर--आकाश पर पहली बत्तियाँ ।
 
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ढिबरियाँ घरों की आईं याद,
 
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सुदूर ।
 
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बहुत दूर थे बरस दिन मास
 
बहुत दूर थे बरस दिन मास
 
 
और उनमें लोग ।
 
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आ टिके अपने ही दिन घास पर
 
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जिनमें बचे थे कुछ ही साबुत ।
 
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बसों की घरघराहट और
 
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वाहनों के शोर के बीच,
 
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आकाश था एक अनवरत
 
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सिलसिला--
 
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हिला
 
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धीरे से  एक पेड़
 
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मैंने ली एक करवट ।
 
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पेड़ की कोई करवट
 
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नहीं होती,
 
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उसकी नींद में भी नहीं ।
 
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रहता है खड़ा
 
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आकाश के नीचे
 
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जड़ें फेंक
 
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धरती में
 
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जब तक कि है ।
 
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18:00, 1 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

वह शाम का एक चोर दरवाज़ा था
पार्क के एकांत में,
चींटों में आकर मिला जा रहा था
रात का रंग ।

एक वायुयान जा रहा था उड़ता हुआ
ऊपर--आकाश पर पहली बत्तियाँ ।

ढिबरियाँ घरों की आईं याद,
सुदूर ।

बहुत दूर थे बरस दिन मास
और उनमें लोग ।

आ टिके अपने ही दिन घास पर
जिनमें बचे थे कुछ ही साबुत ।

बसों की घरघराहट और
वाहनों के शोर के बीच,
आकाश था एक अनवरत
सिलसिला--


हिला
धीरे से एक पेड़
मैंने ली एक करवट ।
पेड़ की कोई करवट
नहीं होती,
उसकी नींद में भी नहीं ।

रहता है खड़ा
आकाश के नीचे
जड़ें फेंक
धरती में
जब तक कि है ।