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कभी मीठा-खारा पानी
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कभी मीठा-खारा पानी<br>
लोहा पत्थर कभी
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लोहा पत्थर कभी<br>
कुछ-न-कुछ होता है प्राप्य
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कुछ-न-कुछ होता है प्राप्य<br>
जब ज़मीन खोदते हैं आप या हम
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जब ज़मीन खोदते हैं आप या हम<br>
पितरों की अनझुकी रीढ़ के अवशेष
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पितरों की अनझुकी रीढ़ के अवशेष<br>
माखुर की डिबिया
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माखुर की डिबिया<br>
चोंगी सुपचाने वाली चकमक
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चोंगी सुपचाने वाली चकमक<br>
मूर्ति में देवता
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मूर्ति में देवता<br>
देवता के हाथों में त्रिशूल खड्ग बाण
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देवता के हाथों में त्रिशूल खड्ग बाण<br>
नाचा के मुखौटे
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नाचा के मुखौटे<br>
कभी भी मिल सकते हैं
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कभी भी मिल सकते हैं<br>
यह सब पता है हम सभीको  
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यह सब पता है हम सभीको <br>
पता नहीं है  
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पता नहीं है <br>
 
हम कहाँ उड़ रहे...
 
हम कहाँ उड़ रहे...

22:19, 12 अगस्त 2006 का अवतरण

कवि: जयप्रकाश मानस

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कभी मीठा-खारा पानी
लोहा पत्थर कभी
कुछ-न-कुछ होता है प्राप्य
जब ज़मीन खोदते हैं आप या हम
पितरों की अनझुकी रीढ़ के अवशेष
माखुर की डिबिया
चोंगी सुपचाने वाली चकमक
मूर्ति में देवता
देवता के हाथों में त्रिशूल खड्ग बाण
नाचा के मुखौटे
कभी भी मिल सकते हैं
यह सब पता है हम सभीको
पता नहीं है
हम कहाँ उड़ रहे...