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पेंटिंग-2 / गुलज़ार
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[[category: नज़्म]]
<poem>
’जोरहट’ में एक दफ़ा
दूर उफ़क के हलके-हलके कुहरे में
’हमीन बरुआ’ के चाय बाग़ान के पीछे
चांद कुछ ऎसे दिखा था
जैसे चीनी की चमकीली कैटल रखी हो!
</poem>
विनय प्रजापति
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