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इमारतें / तुलसी रमण

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|रचनाकार=तुलसी रमण |संग्रह=ढलान पर आदमी / तुलसी रमण
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<Poem>
माना ऊँची
लेकिन हरेक की
नींव रखने के साथ ही
मिट्टी में धँसी हुईहुईंआस-पास उगी हैहैं
अनेक झुग्गियाँ
जिनके बिना
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