भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कुफ़्र / अमृता प्रीतम" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमृता प्रीतम |संग्रह= }} <poem> आज हमने एक दुनिया बेच...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 16: | पंक्ति 16: | ||
आज हमने आसमान के घड़े से | आज हमने आसमान के घड़े से | ||
बादल का एक ढकना उतारा | बादल का एक ढकना उतारा | ||
− | और एक | + | और एक घूँट चाँदनी पी ली |
यह जो एक घड़ी हमने | यह जो एक घड़ी हमने |
04:33, 14 जनवरी 2009 का अवतरण
आज हमने एक दुनिया बेची
और एक दीन ख़रीद लिया
हमने कुफ़्र की बात की
सपनों का एक थान बुना था
एक गज़ कपड़ा फाड़ लिया
और उम्र की चोली सी ली
आज हमने आसमान के घड़े से
बादल का एक ढकना उतारा
और एक घूँट चाँदनी पी ली
यह जो एक घड़ी हमने
मौत से उधार ली है
गीतों से इसका दाम चुका देंगे