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फिर दिन बड़े हो गए / ओमप्रकाश सारस्वत
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08:25, 15 जनवरी 2009
धूप का अजगर
प्यास की आंखों में
धूल और झक्खड़ जितने भी पल थे मोगरे की छांवों के
सब झुलसे इरादों से चिड़चिड़े हो गए
</poem>
प्रकाश बादल
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