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Kavita Kosh से
झुर-झुर बहे बहार
गमक गेंदा की आवे!
दुख की तार-तार चूनर पहनेलौट गई गौरी नइहर रहने
चन्दन लगे किवाड़
पिया की याद सतावे.
भाई चुप भाभी
देता ताने
बचपन की मनुहार
नयन से नीर बहावे.
परदेसी ने की जो अजब ठगी
हुई धूल-माटी की