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मज़दूर / सीमाब अकबराबादी

1 byte added, 08:53, 18 जनवरी 2009
पीठ पर नाक़ाबिले बरदाश्त इक बारे गिराँ
जोफ़ ज़ोफ़ से लरज़ी हुई सारे बदन की झुर्रियाँ
हड्डियों में तेज़ चलने से चटख़ने की सदा
भूल कर भी इसके होंठों तक हसीं आती नहीं.
मज़रूह: घायल ; मुज़महिल : थका हुआ ; बामाँदगी: दुर्बलता
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