पीठ पर नाक़ाबिले बरदाश्त इक बारे गिराँ
जोफ़ ज़ोफ़ से लरज़ी हुई सारे बदन की झुर्रियाँ
हड्डियों में तेज़ चलने से चटख़ने की सदा
इसके दिल तक ज़िन्दगी की रोशनी जती नहीं
भूल कर भी इसके होंठों तक हसीं आती नहीं.
मज़रूह: घायल ; मुज़महिल :थका हुआ ; बामाँदगी: दुर्बलता
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