भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वे लोग / मोहन साहिल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन साहिल |संग्रह=एक दिन टूट जाएगा पहाड़ / मोहन ...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) छो ("वे लोग / मोहन साहिल" सुरक्षित कर दिया [edit=sysop:move=sysop]) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 12: | पंक्ति 12: | ||
धनी होते ही समाप्त हो गई | धनी होते ही समाप्त हो गई | ||
और उनकी मान्यताओं के बदलते ही | और उनकी मान्यताओं के बदलते ही | ||
− | ठहाकों में बदल गया उनका | + | ठहाकों में बदल गया उनका चीख़ना |
वे सब मेरे अपने | वे सब मेरे अपने |
07:49, 19 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
वे केवल
धन की प्रतीक्षा में थे
उनका सारा विरोध
रोटी के पक्ष में
सारी लड़ाई
धनी होते ही समाप्त हो गई
और उनकी मान्यताओं के बदलते ही
ठहाकों में बदल गया उनका चीख़ना
वे सब मेरे अपने
जाने कब आ खड़े हुए मेरे सामने
मेरे प्रतिद्वंद्वी बनकर।