भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"भय / मोहन साहिल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो ("भय / मोहन साहिल" सुरक्षित कर दिया [edit=sysop:move=sysop])
 
पंक्ति 28: पंक्ति 28:
 
बीड़ी न पीने को कहता है  
 
बीड़ी न पीने को कहता है  
 
बस-अड्डे के बोर्ड पर  
 
बस-अड्डे के बोर्ड पर  
लिखा ही रहता है  
+
लिखा रहता है  
 
एडस का कोई इलाज नहीं  
 
एडस का कोई इलाज नहीं  
 
ग्रहण न करें बिना जाँच  
 
ग्रहण न करें बिना जाँच  

20:41, 19 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

बहुत डर लगता है मित्र
पहाड़ की कोई पसली जब टूटकर
ढलानो से लुढ़कती चली जाती है
आँखें बंद कर लेता हूँ
जब कोई देवदार
औंधे मुँह गिरता है
राजमार्ग अवरुद्ध हो जाता है
स्क्रीन पर दिखाए जाते हैं
अनगिनत शव
और वाचक उसी मुस्कान के साथ
पढ़ता है दुर्घटना के समाचार

सहम जाते हूँ
मेरा भाई जब
जुदा रहने की बात करता है
बूढ़ी माँ मर जाने को कहती है
और पत्नि करती है प्रार्थना
संभल कर जाने और्
जल्दी लौट आने की
यहाँ तक कि बेटा भी
कैंसर होने से आगाह करता है
बीड़ी न पीने को कहता है
बस-अड्डे के बोर्ड पर
लिखा रहता है
एडस का कोई इलाज नहीं
ग्रहण न करें बिना जाँच
किसी का ख़ून
सुनो मित्र!
तुम बताओ
इतनी चेतावनियों के बीच जीना
क्या आसान है?