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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=श्रद्धा जैन|संग्रह=}}<poem>घटा से घिर गयी बदली, नज़र नहीं आती<br>बहा ले नीर तू उजली, नज़र नहीं आती<br><br>
हवा में शोर ये कैसा सुनाई देता है<br>कहीं पे गिर गयी बिजली नज़र नहीं आती<br><br>
है चारों ओर नुमाइश के दौर जो यारों<br>दुआ भी अब यहाँ असली नज़र नहीं आती<br><br>
चमन में खार ने पहने, गुलों के चेहरे हैं<br>कली कोई कहाँ, कुचली नज़र नही आती<br><br>
पहाड़ों से गिरा झरना तो यूँ ज़मीं बोली<br>ये दिल की पीर थी पिघली नज़र नही आती<br><br/poem>