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"प्रतीक्षा (दो) / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर

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अभी महीना गुज़रा है आधा
 
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शेष और हैं पंद्रह दिन
 
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समय यह सरके कच्छप-गति से
 
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नंदिनी तेरे बिन
 
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जीवन खाली है, मन खाली
 
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स्मृति की जकड़न
 
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नीली पड़ गई देह विरह से
 
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घेर रही ठिठुरन
 
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मर जाएगा कवि यह तेरा
 
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बिखर जाएगा फूल
 
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अरी, नंदिनी, जब आएगी तू
 
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बस, शेष बचेगी धूल
 
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(रचनाकाल : 2004)
 
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02:33, 4 फ़रवरी 2009 का अवतरण

अभी महीना गुज़रा है आधा
शेष और हैं पंद्रह दिन
समय यह सरके कच्छप-गति से
नंदिनी तेरे बिन

जीवन खाली है, मन खाली
स्मृति की जकड़न
नीली पड़ गई देह विरह से
घेर रही ठिठुरन

मर जाएगा कवि यह तेरा
बिखर जाएगा फूल
अरी, नंदिनी, जब आएगी तू
बस, शेष बचेगी धूल

(रचनाकाल : 2004)