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{{KKRachna
|रचनाकार=स्वप्निल श्रीवास्तव
|संग्रह=ताख़ ताख पर दियासलाई/ स्वप्निल श्रीवास्तव
}}
इच्छाएँ जुड़ी हुई हैं
 
देश-देश घूमने की
 
चांदनी रात में चांदी की तरह
 
चमकती पटरियाँ
 
उसके मस्तिष्क में कौंधती हैं
 
 
लड़की रेल के बारे में सोचती है
 
कि रेल अपने लोहे के पहिए
 
के साथ कितने शहर
 
धांगती होगी
 
 
लड़की घर के बाहर
 
निकलना चाहती है
 
वह चाहती है, उसके पाँव
 
लोहे के पहियों में बदल जाएँ