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मामा-चाचा | मामा-चाचा | ||
सभी ने डोली उतार | सभी ने डोली उतार | ||
− | विदा दी थी | + | विदा दी थी जहाँ |
उसी पड़ाव पर उतारना | उसी पड़ाव पर उतारना | ||
गाड़ी वाले भइया | गाड़ी वाले भइया | ||
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बीस साल बीते | बीस साल बीते | ||
− | लौटी | + | लौटी हूँ पीहर |
तब तो सड़क एक ही थी | तब तो सड़क एक ही थी | ||
पूरब में देस था | पूरब में देस था | ||
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कैसा अंधेर है भाई | कैसा अंधेर है भाई | ||
हर पड़ाव बन गया चौराहा | हर पड़ाव बन गया चौराहा | ||
− | भूलने लगी | + | भूलने लगी हूँ मैं |
अपने ही घर की दिशा | अपने ही घर की दिशा | ||
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कोई गले लगकर नहीं पूछता | कोई गले लगकर नहीं पूछता | ||
राज़ी तो हो बेटी | राज़ी तो हो बेटी | ||
जवांई बाबू नहीं आए? | जवांई बाबू नहीं आए? | ||
− | + | कँधे से कँधा भिड़ाए | |
भाग रही है भीड़ | भाग रही है भीड़ | ||
सभी चेहरे | सभी चेहरे | ||
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या बिलों में घुस गये | या बिलों में घुस गये | ||
वे लोग | वे लोग | ||
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ये नन्हें बच्चे | ये नन्हें बच्चे | ||
जिनसे पूछा है मैंने | जिनसे पूछा है मैंने | ||
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कहीं से उगाहने | कहीं से उगाहने | ||
अनाथालय का चंदा | अनाथालय का चंदा | ||
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अरे बेटा! | अरे बेटा! | ||
दादी को खबर करो | दादी को खबर करो | ||
गौरी जीजी आई हैं | गौरी जीजी आई हैं | ||
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चली आओ बेटी | चली आओ बेटी | ||
आँखों में उतरा है | आँखों में उतरा है | ||
जब से मोतिया बिंद | जब से मोतिया बिंद | ||
खो गई है पहचान | खो गई है पहचान | ||
− | बस आहट से पहचान लेती | + | बस आहट से पहचान लेती हूँ |
− | मैं भी तो लौटी | + | मैं भी तो लौटी हूँ अम्मा |
अतीत की एक आहट-सी | अतीत की एक आहट-सी | ||
− | आहटें | + | आहटें ढूँढ़ रही हूँ |
− | वैसे तो | + | वैसे तो आँखों में |
नहीं बसी कभी कोई पहचान | नहीं बसी कभी कोई पहचान | ||
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02:57, 8 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
पिता-भाई
मामा-चाचा
सभी ने डोली उतार
विदा दी थी जहाँ
उसी पड़ाव पर उतारना
गाड़ी वाले भइया
बीस साल बीते
लौटी हूँ पीहर
तब तो सड़क एक ही थी
पूरब में देस था
पश्चिम में परदेस
कैसा अंधेर है भाई
हर पड़ाव बन गया चौराहा
भूलने लगी हूँ मैं
अपने ही घर की दिशा
कोई गले लगकर नहीं पूछता
राज़ी तो हो बेटी
जवांई बाबू नहीं आए?
कँधे से कँधा भिड़ाए
भाग रही है भीड़
सभी चेहरे
नये और जवान
काया पलट हो गई क्या सबकी
या बिलों में घुस गये
वे लोग
ये नन्हें बच्चे
जिनसे पूछा है मैंने
बड़ी चौकी का पता
क्यों घूरते हैं ऐसे
जैसे हूँ नहीं इनमें से
किसी के बाप की बुआ
कोई बहिन जी आई हैं
कहीं से उगाहने
अनाथालय का चंदा
अरे बेटा!
दादी को खबर करो
गौरी जीजी आई हैं
चली आओ बेटी
आँखों में उतरा है
जब से मोतिया बिंद
खो गई है पहचान
बस आहट से पहचान लेती हूँ
मैं भी तो लौटी हूँ अम्मा
अतीत की एक आहट-सी
आहटें ढूँढ़ रही हूँ
वैसे तो आँखों में
नहीं बसी कभी कोई पहचान