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कुछ तो कहो न / रंजना भाटिया

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बरस रही बदरी
यह रिमझिम
फ़िर फिर भी ..
इतने मौन से तुम
स्तब्ध हो ..
माटी की मूरत जैसे
पर कुछ उद्देलितउद्वेलित
और कुछ बैचेन से
जैसे किसी तलाश में गुम
पर न जाने
तुम अब भी
उलझे धागों -से
हो किसी
उधेड़बुन में गुमसुम...