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सपने / रंजना भाटिया
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13:53, 12 फ़रवरी 2009
<Poem>
शबनम के कुछ कतरे
यादो
यादों
के जाल में
धीरे से
बस यूँ ही
आँखो
आँखों
में
उतर आते हैं
कभी ना सच होने के लिए !
</poem>
द्विजेन्द्र द्विज
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