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कुछ शेर / फ़राज़

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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
1.
अब किस का जश्न मनाते हो उस देस का जो तक़्सीम हुआ
अब किस के गीत सुनाते हो उस तन-मन का जो दो-नीम हुआ
अब किस का जश्न मनाते हो 2.उस देस ख़्वाब का जो तक़्सीम रेज़ा रेज़ा उन आँखों की तक़दीर हुआ <br>अब किस के गीत सुनाते हो उस तन-मन नाम का जो दोटुकड़ा टुकड़ा गलियों में बे-नीम तौक़ीर हुआ <br><br>
3.उस ख़्वाब परचम का जो रेज़ा रेज़ा उन आँखों जिस की तक़दीर हुआ <br>हुर्मत बाज़ारों में नीलाम हुईउस नाम मिट्टी का जो टुकड़ा टुकड़ा गलियों में बे-तौक़ीर हुआ <br><br>जिस की हुर्मत मन्सूब उदू के नाम हुई
4.उस परचम जंग का जिस की हुर्मत बाज़ारों में नीलाम हुई <br>जो तुम हार चुके उस रस्म का जो जारी भी नहींउस मिट्टी ज़ख़्म का जो सीने पे न था उस जान का जिस की हुर्मत मन्सूब उदू के नाम हुई <br><br>जो वारी भी नहीं
5.उस जंग ख़ून का जो तुम हार चुके उस रस्म का जो जारी भी नहीं <br>बदक़िस्मत था राहों में बहाया तन में रहा उस ज़ख़्म फूल का जो सीने पे न बेक़ीमत था उस जान का जो वारी भी नहीं <br><br>आँगन में खिला या बन में रहा
6.उस ख़ून मश्रिक़ का जो बदक़िस्मत था राहों में बहाया तन में रहा <br>जिस को तुम ने नेज़े की अनी मर्हम समझा उस फूल मग़रिब का जो बेक़ीमत था आँगन में खिला या बन में रहा <br><br>जिस को तुम ने जितना भी लूटा कम समझा
उस मश्रिक़ 7.उन मासूमों का जिस को जिन के लहू से तुम ने नेज़े की अनी मर्हम समझा <br>फ़रोज़ाँ रातें कीं उस मग़रिब या उन मज़लूमों का जिस को तुम ने जितन भी लूटा कम समझा <br><br>से ख़ंज़र की ज़ुबाँ में बातें कीं
उन मासूमों का जिन के लहू से तुम ने फ़रोज़ाँ रातें कीं <br>8.या उन मज़लूमों उस मरियम का जिस से ख़ंज़र की ज़ुबाँ इफ़्फ़त लुटती है भरे बाज़ारों में उस ईसा का जो क़ातिल है और शामिल है ग़मख़्वारों में बातें कीं <br><br>
उस मरियम का जिस की इफ़्फ़त लुटती है भरे बाज़ारों में <br>9.उस ईसा इन नौहागरों का जो क़ातिल है और शामिल है ग़मख़्वारों में <br><br>जिन ने हमें ख़ुद क़त्ल किया ख़ुद रोते हैं ऐसे भी कहीं दमसाज़ हुए ऐसे जल्लाद भी होते हैं
इन नौहागरों 10.उन भूखे नंगे ढाँचों का जिन ने हमें ख़ुद क़त्ल किया ख़ुद रोते हैं <br>जो रक़्स सर-ए-बाज़ार करें ऐसे भी कहीं दमसाज़ हुए ऐसे जल्लाद भी होते हैं <br><br>या उन ज़ालिम क़ज़्ज़ाक़ों का जो भेस बदल कर वार करें
11.या उन भूके नन्गे ढाँचों झूठे इक़रारों का जो रक़्स सर-ए-बाज़ार करें <br>आज तलक ऐफ़ा न हुए या उन ज़ालिम क़ज़्ज़ाक़ों बेबस लाचारों का जो भेस बदल कर वार करें <br><br>और भी दुख का निशाना हुए
या उन झूठे इक़रारों 12.इस शाही का जो आज तलक ऐफ़ा न हुए <br>दस्त-ब-दस्त आई है तुम्हारे हिस्से में या उन बेबस लाचारों का जो और भी दुख का निशाना हुए <br><br>क्यों नन्ग-ए-वतन की बात करो क्या रखा है इस क़िस्से में
इस शाही का जो दस्त-ब-दस्त आई है तुम्हारे हिस्से में <br>क्यों नन्ग-ए-वतन की बात करो क्या रखा है इस क़िस्से में <br><br>13.आँखों में छुपाये अश्कों को होंठों में वफ़ा के बोल लिये <br>इस जश्न में भी शामिल हूँ नौहों से भरा कश्कोल लिये <br><br/poem>
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