{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अहमद नदीम काज़मीक़ासमी
|संग्रह=
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
अब तक तो नूर-ओ-निक़हत-ओ-रंग-ओ-सदा कहूँ,
मैं तुझको छू सकूँ तो ख़ुदा जाने क्या कहूँ
अब तक तो नूर-ओ-निख़त-ओ-रंग-ओ-सदा कहूँलफ़्ज़ों से उन को प्यार है मफ़हूम् से मुझे,<br>वो गुल कहें जिसे मैं तुझे छू सकूं तो ख़ुदा जाने क्या तेरा नक्श-ए-पा कहूँ|<br><br>
लफ्ज़ों से उन को प्यार अब जुस्तजू है मफ्हूम से मुझेतेरी जफ़ा के जवाज़ की,<br>वो गुल कहें जिसे मैं तेरा नक्ष-ए-पा जी चाहता है तुझ को वफ़ा आशना कहूँ|<br><br>
अब जुस्तजू सिर्फ़ इस के लिये कि इश्क़ इसी का ज़हूर है तेरी जफ़ा के जवाज़ की,<br>जी चाहता है तुझ मैं तेरे हुस्न को भी सबूत-ए-वफ़ा आशना कहूँ|<br><br>
सिर्फ़ इस के लिये कि इश्क़ इसी का ज़हूर हैतू चल दिया तो कितने हक़ाइक़ बदल गये,<br>मैं तेरे हुस्न नज़्म-ए-सहर को भी सबूतमरक़द-ए-वफ़ा शब का दिया कहूँ|<br><br>
तू चल दिया तो कितने हक़ाइक़ बदल गयेक्या जब्र है कि बुत को भी कहना पड़े ख़ुदा,<br>नज्म-ए-सहर को मरक़द-ए-शब का दिया वो है ख़ुदा तो मेरे ख़ुदा तुझको क्या कहूँ|<br><br>
क्या जब्र जब मेरे मुँह में मेरी ज़ुबाँ है कि बुत को भी कहना पड़े ख़ुदा,<br>वो है ख़ुदा तो मेरे ख़ुदा तुझ को क्या क्यूँ न मैंजो कुछ कहूँ यक़ीं से कहूँ बर्मला कहूँ|<br><br>
जब मेरे मुहं में मेरी ज़ुबां है तो क्यूं नक्या जाने किस सफ़र पे रवाँ हूँ अज़ल से मैं,<br>मैं जो कुछ कहूं यकीं से कहूं बर्मला हर इंतिहा को एक नयी इब्तिदा कहूँ|<br><br>
क्या जाने किस सफ़र पे रवां हूँ अज़ल से मैं,<br>हर न्तहा को एक नयी इब्तिदा कहूँ|<br><br> हो क्यू क्यूँ न मुझ को अपने मज़ाक़-ए-सुख़न पे नाज़,<br>ग़ालिब को कायनात-ए-सुख़न का ख़ुदा कहूँ |<br><br/poem>