भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उदास सी इक शाम / हरकीरत हकीर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरकीरत हकीर }} <Poem> उदास सी इक शाम खिड़की पे उतर आई ...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
02:24, 1 मार्च 2009 का अवतरण
उदास सी इक शाम
खिड़की पे उतर आई है
मौत इक कदम चल कर
कुछ और करीब आई है
चलो अच्छा है
अब न सहना होगा
लंबी रातों का दर्द
न अब देह बेवहज
दर्द के बीज बोयेगी
लो मैंने खोल दी है
आसमां की चादर
रंगीन धागों में इक किरण
कफ़न सिल लाई है
उम्मीदों के पत्ते
गम की बावली में डुबोकर
जिन्दगी
वेश्या सी मुस्कुराई है।