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मेरी रचना के अर्थ / रमानाथ अवस्थी
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12:56, 8 सितम्बर 2006
पर मैं खुद ही प्यासा हूं मरुथल सा<br>
यह बात समंदर को समझा देना।
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<br>
चांदनी चढ़ाता हूं उन चरणों पर<br>
जो अपनी राहें आप बनाते हैं<br>
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घनश्याम चन्द्र गुप्त