Changes

कानन दै अँगुरी रहिहौं / रसखान

96 bytes removed, 13:12, 21 अप्रैल 2008
लेखक: [[रसखान]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:पद]][[Category:|रचनाकार = रसखान]] ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~}}
कानन दै अँगुरी रहिहौं, जबही मुरली धुनि मंद बजैहै।
माहिनि मोहिनि तानन सों रसखान, अटा चड़ि गोधन चढ़ि गोधुन गैहै पै गैहै॥
टेरी कहाँ टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि, काल्हि कोई कितनो समझैहै।
माई री वा मुख की मुसकान, सम्हारि न जैहै, न जैहै, न जैहै॥
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,214
edits