भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कह-मुकरियाँ / अमीर खुसरो" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
कवि: [[अमीर खुसरो]]
+
रचनाकार: [[अमीर खुसरो]]
 
[[Category:कविताएँ]]
 
[[Category:कविताएँ]]
 
[[Category:अमीर खुसरो]]
 
[[Category:अमीर खुसरो]]

19:57, 16 दिसम्बर 2006 का अवतरण

रचनाकार: अमीर खुसरो

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*

खा गया पी गया

दे गया बुत्ता

क्यों सखि साजन !

ना सखि कुत्ता !


लिपट लिपट के वा के सोई
छाती से छाती लगा के रोई
दांत से दांत बजे तो ताड़ा।
ऐ सखी साजन? ना सखी, जाड़ा!

ऊंची अटारी पलंग बिछायो
मैं सोई मेरे सिर पर आयो
खुल गई अंखियां भयी आनंद।
ऐ सखी साजन? ना सखी, चांद!

वो आवै तो शादी होय
उस बिन दूजा और न कोय
मीठे लागें वा के बोल।
ऐ सखी साजन? ना सखी, ढोल!

आप हिले और मोहे हिलाए
वा का हिलना मोए मन भाए
हिल हिल के वो हुआ निसंखा।
ऐ सखी साजन? ना सखी, पंखा!

सगरी रैन छतियां पर राख
रूप रंग सब वा का चाख
भोर भई जब दिया उतार।
ऐ सखी साजन? ना सखी, हार!

पड़ी थी मैं अचानक चढ़ आयो
जब उतरयो तो पसीनो आयो
सहम गई नहीं सकी पुकार।
ऐ सखी साजन? ना सखी, बुखार!

सेज पड़ी मोरे आंखों आए
डाल सेज मोहे मजा दिखाए
किस से कहूं अब मजा में अपना।
ऐ सखी साजन? ना सखी, सपना!

बखत बखत मोए वा की आस
रात दिना ऊ रहत मो पास
मेरे मन को सब करत है काम।
ऐ सखी साजन? ना सखी, राम!