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{{KKRachna
|रचनाकार=जिगर मुरादाबादी
}} <poem>
[[Category:ग़ज़ल]]
इश्क़ को बे-नक़ाब होना था
हाँ मुझी को ख़राब होना था
दिल कि जिस पर हैं नक़्श-ए-रन्गा-रंग रंगारंग
उस को सादा किताब होना था
हमने नाकामियों को ढूँड ढूँढ लिया आ ख़िरश आख़िर इश्क कामयाब होना था
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