भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दूर होने दो अँधेरा / कैलाश गौतम" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=कैलाश गौतम | |
− | + | |संग्रह= | |
− | + | }} | |
− | + | ||
− | + | ||
दूर | दूर | ||
14:12, 8 मई 2009 का अवतरण
दूर
होने दो अँधेरा
अब घरों से
दूर होने दो।
और ताज़ा कर सके
माहौल को जो
साज़ ऐसा दो
बाँध ले
गिरते समय के मूल्य को
अंदाज़ ऐसा दो
आग बोओ
और काटो
रोशनी भरपूर होने दो।।
हम सँवारेंगे
हरे पन्ने
गुलाबी धूप के अक्षर
दूर तक
गूँजे दिशाओं में
पसीने के उभरते स्वर
जल खिलेगा
और तोड़ो पर्वतों को
चूर होने दो।।